कहते हैं बेटी माँ की परछाई होती हैं ,वो मेरी परछाई नही ,एक दैवीय ज्योति हैं,जो जीवन को प्रकाशित करती हैं मेरा ही चेहरा,मेरी शक्ति,शांति,संगती ,गीति,आरोही ....
Friday, January 2, 2009
उसे देखा हैं पहले भी कहीं ..............
लगता हैं ,जैसे उसे देखा हैं पहले भी कहीं ।
कहाँ? ये याद नही ।
शायद मेरे सपनो में ,
मेरी कल्पनाओ में ,
मेरी भावनाओ में ।
शायद...नीले बादलो में,
टीमटिमाते तारो में,
वासंती बहारो में ,
शायद...
कभी कहीं किसी मोड़ पर ,
इस या उस जनम के छोर पर,
रात को दिन बनाती भोर पर ।
उसे देखा हैं कहीं ....
इसी तरह मुस्कुराते हुए ,
रुठते- मनाते हुए ,
हँसते खिलखिलाते हुए ,
गाते लजाते हुए ,
देखा हैं कहीं ....
शायद ...अपने ही चेहरे में ,
वास्तविकता से बहरे
अंतर्मन के सुंदर सेहरे में ,
उसे देखा हैं मैंने कहीं ...
कहाँ ये जानती नही ...
पर हर पल आती जाती साँस मुझे बताती हैं ,
वह युगों से मेरी हैं ,मेरी सखी सहेली हैं ।
मेरी 'बेटी' सात सुर हैं मेरे, साथी जन्मो के ,
औरो के लिए भले वो नये गीत सी नवेली हैं ।
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