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Wednesday, December 31, 2008

सेल्फ हेल्प बुक्स का बढ़ता बाज़ार.....क्या हैं सच ?

सेल्फ हेल्प बुक्स !किताबो की किसी भी बड़ी दुकान में सबसे अधिक किताबे जिस विषय पर संग्रहीत की गई होंगी वह हैं सेल्फ हेल्प। कई लेखको की कई सेल्फ हेल्प से सम्बंधित कई विषयों पर किताबे ,कभी आत्मविश्वास पर ,कभी जीवन को जीने के तरीके पर ,कभी महिला शक्ति पर ,कभी अच्छी आदतों पर ,कभी जीत पर ,कभी सकारात्मक विचारो पर ,कभी प्रभावी जीवन शैली पर,कभी कार्य कुशलता पर ,कभी रिश्ते नातो की साज संभाल पर..................किताबे ही किताबे . इन किताबो की बिक्री का बाज़ार बढ़ता ही जा रहा हैं ,इतनी किताबे और हर किताब की चालीस -पचास लाख प्रतिया बेचीं गई होने का दावा !इन किताबो की चमक दमक ,लेखको के सुनहले वादे और इन सब के बीच चकराता आम पाठक । करे तो आख़िर क्या ?पढ़े तो क्या ?ख़रीदे तो कौनसी किताब ?बडे बडे नाम ,बडे बडे पब्लिकेशन और एक सामान्य भारतीय वाचक ।

इन सबसे बडा प्रश्न यह की अचानक इन किताबो की इतनी बाढ़ सी जो आई हैं ,उसके पीछे क्या यह कारण हैं की यह किताबे बहुत अभूतपूर्व हैं?या इनके जैसे लेखक ज्ञात इतिहास में कभी नही हुए ?इन किताबो में जो लिखा गया हैं वो कभी भी कही भी नही लिखा गया ?या भारतीय व्यक्ति की जीवन शैली,जीवन पद्धति,जीवन दर्शन में आमूलचूल परिवर्तन आया हैं ।

आजकल जो यह सेल्फ हेल्प बुक्स धड़्ड्ले से बिकती जा रही हैं इसके पीछे ,इन्हे पढने का चलन होने के आलावा यह भी कुछ मत्वपूर्ण कारण हैं :-एकाकी परिवारों,नातो रिश्तो में जटिलता ,कठिनतम जीवन ,भाग दौड़,जीवन में बढ़ता तनाव ,बढती प्रतियोगिता ,अमीर बनने की ,श्रेष्ट बनने की अतीव इच्छा ।

दरअसल हो यह रहा हैं की इस कठिन समय में जब सबको जीवन में बहुत कुछ पाना हैं ,न जीवन की कोई गारंटी रही हैं ,नही शिक्षा की ,न किसी रिश्ते की,न प्रेम की ,सब कुछ पर से भरोसा उठता जा रहा हैं ,और यही मूल कारण हो रहा हैं की जब व्यक्ति ख़ुद को एकाकी समझता हैं तब उसे किसी न किसी सहारे की जरुरत पड़ती हैं ,वह सहारा किताबे भी हो सकती हैं,जो उसे जीवन के कठिन समय से लड़कर ,जीतकर आगे बढ़ना सिखाये इसलिए यह सेल्फ हेल्प की किताबे धडाधड बिकती जा रही हैं ।

कुछ किताबे जो वाकई में बहुत अच्छी हैं, उनकी बात छोड़ दी जाए तो बहुत सी किताबे ऐसी हैं ,जिनमे जीवन के कई पक्षों पर सारगर्भित विचार नही हुआ हैं ,किसी एक सोच ,किसी एक पक्ष को लेकर जीवन नही जिया जा सकता ,मनुष्य जीवन बहुआयामी हैं ,इसके कई रूप हैं,इसमे आने वाले प्रसंग कई रंग और रूप लेकर आते हैं,हर व्यक्ति की मूल भुत प्रवृति अलग अलग होती हैं ,परिस्तिथियाँ अलग अलग होती हैं ,इसे में किसी एक विचार विशेष को लेकर उसके सहारे सभी परिस्तिथियों के निर्वहन की बात कुछ अटपटी सी ही लगती हैं । मैंने भी बहुत सी किताबे पढ़ी हैं यही जानने के लिए की ऐसा कौनसा मंत्र हैं इनमे, की जिसे पढने के बाद जीवन ही बदल जाता हैं ,मजे की बाद यह हैं की इक्का दुक्का बातो को छोड़ दे तो सभी किताबो में नए रूप से ,नए तरीके से, लगभग वही बात लिखी गई हैं ,वही समझाया गया हैं हैं ,जो हम सभी हैं ,जानते हैं ,समझते हैं पर वह्य्वार में नही ला पाते ।
हो यह रहा हैं की हम बहुत अकेले पड़ते जा रहे हैं ,हमारी शिक्षा पद्धति हमें किताबी ज्ञान तो करवा देती हैं ,कई बार दो चार अच्छे सुभाषित भी रटवा देती हैं,अच्छी कलाओ का अति संषिप्त ज्ञान भी करवा देती हैं ,लेकिन जीवन जीने का सही तरीका,जीवन आख़िर क्या हैं? आने वाली हर कठिनाई का सामना कैसे किया जा सकता हैं ?इन सब बातों का ज्ञान नही करवा पाती । हम अकेले होने लगते हैं ,जब रिश्तो में टूटन आने लगती हैं,हम असफलता की ओर बढ़ते जाते हैं और तब याद आती हैं सेल्फ हेल्प बुक्स ,कई प्रबुद्ध पहले ही इन्हे पढ़ कर जीवन के रणक्षेत्र में सम्हले हुए योद्धा की तरह खड़े होते हैं . किंतु बात यहाँ आकर ख़त्म नही होती ,मैं नही कहती की इन किताबो का ,इन पुस्तकों का वाचन ग़लत हैं ,नही बिल्कुल नही ,हमें हमेशा पढ़ते ही रहना चाहिए ,किताबे मनुष्य की सबसे सगी मित्र होती हैं ,लेकिन इन किताबो में लिखी हर बात को अक्षरश: जीवन में पालन कर देखना मुझे नही लगता की यथार्थ के धरातल की पथरीली जमीन को नाज़ुक और सरल बना सकता हैं .

संस्कार जो बडे बच्चो को दे सकते हैं,विद्यालय जो अपने छात्रो को सिखा सकते हैं ,और आत्म विश्लेषण जो हम सभी मनुष्य कर सकते हैं ,इन तीन बातो का बड़ा महत्व हैं . कहते हैं न "आत्मा व अरे दृष्टव्य :"हमारी आत्मा में असीम ज्ञान भरा हैं,हर परिस्थिति से लड़ने का रास्ता हमें ही पता हैं ,हम जानते हैं की कब क्या करना सही हो सकता हैं और क्या ग़लत ,ये किताबे हमें सिर्फ़ रास्ता दिखाती हैं अत: इन्हे पढ़ना ग़लत नही हैं,लेकिन मंजिल हमें ख़ुद को पानी हैं ,अपने तरीके से,अपनी विचार श्रृंखला स्वत परिमार्जित कर ,स्वत: को सबल और सक्षम महसूस कर ,तभी हम जीवन में हमेशा जीत पा सकते हैं ,एक सुंदर और आनंदी जीवन निर्वाह कर सकते हैं .


नवीन वर्ष ,नवीन आशा ,उत्साह और नवीन समय लेकर कुछ ही समय में पदार्पण कर रहा हैं ,आप सभी को नवीन वर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाये ,आशा करती हूँ आने वाला नवीन वर्ष आप सभी के लिए बहुत आनंददाई और मंगलमय होगा . इति
वीणा साधिका
राधिका

Tuesday, December 23, 2008

लोग क्या कहेंगे ?

बेटी की शादी २८ की उम्र में भी नही करवाओगे ?लोग क्या कहेंगे ?
इस बार भी स्कूल में छठा स्थान चीनू!इस बार भी फर्स्ट नही !दिनु की मामी ,टीनू के पापा ,मीनू की मम्मी क्या कहेंगी ?लोग क्या कहेंगे?
अच्छा खासा इंजीनियरिंग छोड़कर खेतो ,फुल पौधों का काम करोगे (एग्रीक्लचर )?लोग क्या कहेंगे ?
एकलौते बेटे की शादी और जरा भी तामझाम नही,नही चाट का स्टाल , डीजे का धमाल, रोशनियों की चमक, सगे संबंधियों को उपहार ,लोग क्या कहेंगे ?
अच्छा खासी नौकरी करते हो ,काफी पैसा हैं तुम्हारे पास ,फ़िर उसी पुराने घर में उसी टूटे फूटे फर्नीचर के साथ रहोगे?लोग क्या कहेंगे ?
बड़ी बहु होकर भी रिश्तेदारों के यहाँ नही गई ?समाज वाले क्या कहेंगे ?लोग क्या कहेंगे ?
कैसे पति हो ,शादी १० वि वर्षगाठ पर भी मुझे महंगा तोहफा नही दिलवा सकते मेरी सहेलिया क्या कहेंगी ?
चाहे कितना कष्ट हो ससुराल में यु घर परिवार और पति को छोड़कर अकेली रहोगी?लोग क्या कहेंगे ?
त्यौहार दिन भी वही पुरानी साडी ?आसपास की औरते क्या कहेंगी?
बुढापा गया हैं अब इस उम्र में मेकडांल्ड्स में बैठ कर बर्गर खाउन्गीतो लोग क्या कहेंगे ?
अरे इस छोटी सी शादी करने के उम्र में ,सजने सवारने की उम्र में यहाँ पार्वती माता की पूजा करती रहेगी , तेरी सहेलिया क्या कहेंगी?लोग क्या कहेंगे?
बड़ी सी मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ एक छोटा सा रेस्तौरेंत खोल लियालोग क्या कहेंगे ?

लोग क्या कहेंगे ??भारतीय समाज में ,भारतीय परिवारों में रोज़ रोज़ उठने वाला एक अत्यन्त ,गंभीर ,ज्वलंत प्रश्नइस प्रश्न के सामने तृतीय विश्व युद्ध का प्रश्न ?आर्थिक मंदी का प्रश्न?भ्रष्ट राजनीती का प्रश्न?आतंकवाद का प्रश्न ?शिक्ष्ण के उच्च स्तर का प्रश्न?कलाओ की विरासत को सँभालने सहेजने के प्रश्न ?बिघडते पर्यावरण का प्रश्न ?सब के सब प्रश्न छोटे नज़र आते हैंकयोकी हममें से आधिकतर लोग घर में बैठ कर५ बाहर के लोग क्या कहेंगे ?इस प्रश्न पर ही अपनी आधी से अधिक उम्र तक विचार करते रहते हैं ?शुक्र हैं हम यह नही कहते...फला आतंकवादी मारा गया अब आतंकवाद बिरादरी के लोग क्या कहेंगे?

मैं नही कहती की समाज में रह कर हमें समाज के निति नियमो को नही मानना चाहिए या समाज का थोड़ा बहुत विचार नही करना चाहिएलेकिन यह सब एक सीमा से अधिक नही होना चाहिए,ईश्वर ने मनुष्य को विवेक दिया हैं , जिसका इस्तमाल कर वो सही ग़लत,अच्छे बुरे की समझ रखता हैं ,हर व्यक्ति की सोच, परिस्तिथिया, अलग होती हैं ,जीवन को देखने का ,उसे जीने का ,लक्ष्य निर्धारित करने का तरीका अलग होता हैं ,इसलिए सिर्फ़ लोग क्या कहेंगे इसके आधार पर किसी के जीवन की दिशा निर्धारित करना कहाँ तक सही हैं ?

भारत एक विकासशील देश हैं और देश के विकास के लिए यह आवश्यक हैं की लोग क्या कहेंगे इस प्रश्न से उपर उठ कर ,हमारे लिए ,हमारे अपनों के लिए,हमारे देश के लिए क्या सही हैं इसका विचार किया जाए ,वरना इस प्रश्न में उलझ कर हम कभी तरक्की नही कर सकतेअगर उन्नति करना हैं तो छोटी छोटी बातो से लड़ना और आगे बढ़ना भी सीखना ही होगा .

इति
वीणा साधिका
राधिका

Tuesday, December 16, 2008

एक ऐसा भी रियलिटी शो ...........

रियलिटी शो .................एक ऐसा फार्मूला जो टीवी चेनल्स की टीआरपी बढ़ने में चेनल्स की मदद करता हैं,जिसमे बच्चो को हीरो और हेरोइन की तरह पेश किया जाता हैं,बड़ी बड़ी बातें की जाती हैं ,बड़े बड़े स्टार्स बुलवाए जाते हैं ,दिवाली,क्रिसमस पर भी शायद न की जाए इतनी चमक दमक इस शो में की जाती हैं ,कुछ झूठी बनावटी तारीफे की जाती हैं ,कुछ पूर्वनियोजित बहस हो जाती हैं,जज एक दुसरे पर टिका टिप्पणी करते हैं,बच्चो की जरा सी गलती पर बढा चढाकर बुराई की जाती हैं ,इतना की कोई शिन्जनी सेन गुप्ता हमेशा के लिए आवाज़ खो देती हैं,तो कोई अपना आत्मविश्वास ,और जीन पर तारीफों की बौछार की जाती हैं,वो कोई एक संगीत दुनिया का चमकता सितारा बन जाता हैं ,इन सब में खासकर म्युजिकल रियलिटी शोज में संगीत कही नही रहता ,न बच्चे सुर में गाते हैं ,न सिखाने वाले सिखा पाते हैं ,रहती हैं तो सिर्फ़ बनावट ,दिखावट और सजावट।कुल मिलाकर रियलिटी शो ,रियलिटी शो न होकर ,बनावटी शो हो जाता हैं। लेकिन कहते हैं न आशा के सारे दरवाज़े बंद हो जाने पर भी एक दरवाज़ा कहीं न कहीं खुला होता हैं ,जो आशा की किरण अपने साथ ले आता हैं ,एक ऐसा ही रियलिटी शो मैं इन दिनों देख रही हूँ,वह हैं जी मराठी पर सोमवार ,मंगलवार रात ९:३० पर आने वाला मराठी सा रे ग म प , संचालन पल्लवी जोशी करती हैं ,वह जो भी कहती हैं एकदम सरल भाषा में ,सुंदर शब्दों में और उतना ही सत्य ,इस शो में जजेस एक दुसरे पर छीटा कशी नही करते ,नही प्रतियोगियों के बटवारे होते हैं , बच्चे अच्छा गाए तो जजेस मन से उनकी तारीफ करते हैं ,और जहाँ जो गलती हो उसे अच्छी तरह बच्चोको समझाते हैं। इस शो में बच्चे अपनी मासूम मुस्कराहट से,मधुर आवाज़ से और भोली बातों से जहाँ सबका दिल जीतते हैं वही उनके गायन की कोई तुलना नही की जा सकती,ये बच्चे जितना सुर में गाते हैं ,अच्छे अच्छे कलाकारों को लाइव प्रोग्राम मेंइतना सुरीला गाना कठिन जान पड़ता हैं , उनका आत्मविश्वास तो मानो दुनिया जीतने की ताकत रखता हैं,जब इस शो में आदरणीय शंकर महादेवन जी आए थे उस दिन बच्चो ने जिस मधुरता के साथ गाया मैं इन बच्चो की कलात्मकता और स्वर सिद्धि को देखकर मैं आनंद से रोने लगी ।मैं इस मराठी शो की तारीफे इसलिए नही कर रही क्योकि मैं मराठी हूँ ,बल्कि इसलिए कर रही हूँ क्योकि मैं एक संगीतकार, संगीत श्रोता ,और एक आम दर्शक हूँ । कभी अवसर मिले तो यह शो एक बार जरुर देखे जो सच्चे अर्थो में रियलिटी शो कहलाने का हक़दार हैं । इस लिंक पर जाए और इन बच्चो का गाना अवश्य सुने और इन्हे आशीर्वाद दे . http://www.zeemarathi.com/SRGMPLittleChamps2008/default.htm

Wednesday, December 3, 2008

हैरान हूँ मैं ..................

शाम का वही ७ बजे का समय,वही गीत के बोल और वही मैं ...लेकिन तब और अब में कितना अंतर आ गया हैं न!तब ये गीत सिर्फ़ एक गीत था और गीतों की तरह और आज सबसे बडा सच ,जीवन का सबसे बडा सच,हर भारतीय के जीवन का ही नही हर इंसान के जीवन का सच । तुझसे नाराज़ नही जिंदगी हैरान हूँ मैं ..तेरे मासूम सवालो से परेशान हूँ मैं ,नाराज़गी आख़िर किस बात की?हमने वह सब तो पा लिया जिसकी चाह थी ,कितने आगे बढ़ गए हम । बैलगाडी,रथ,से ऑटो ,कार ,ट्रेन,प्लेन तक ,झोपडी,कुटिया से ,बंगला ,फ्लेट ,अपार्टमेन्ट और 1bhk तक,सोने से हीरे,मोतियों, प्लेटिनम और आर्टिफिशियल ज्वेलरी तक, दाल, रोटी से पिज्जा, बर्गर, सेंडविच तक, हाट ,बाज़ार से बड़े बड़े शोपिंग मॉल्स तक, दीपों की रोशनी से बड़े बड़े बल्ब , ट्यूबलाइट और सी ऍफ़ एल की रोशनी तक,पृथ्वी से चाँद मंगल तक ,आयुर्वेदिक उपचारों से बड़ी बड़ी महंगी दवाइयों तक,घर में माँ के हाथ से सिले,दरजी के बनाये कपड़ो से डिजाइनर और कीमती कपड़ो तक ,खस के ठंडे पर्दों से ,पंखे से, कूलर से वातानुकूल यंत्र (एसी )तक ,छोटे से विद्यालयो से विश्वविद्यालयो तक , सरकारी कार्यालयों से मल्टीनेशनल कंपनी के चमकदार भव्य ऑफिस तक ,और संयुक्त परिवारों से एकाकी परिवारों और एकाकी जीवन तक,१०० sal की औसत उम्र 70 ,50 और २०-10 sal की अति औसत उम्र तक ,चोर डाकू से दंगाइयों के खौफ और आतंकवादियों के आतंक तक .....

जो कुछ भी मुंबई में हुआ उसने जीवन का अर्थ और उसके बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया,आतंक वादी कहाँ से आए?दंगे किसने करवाए ?परिवार क्यो टूटे?क्यो जिंदगी से नाराज़ नही होकर भी हर कोई हैरान हो गया ?इन सबके बारे में बहुत सोचा ।सुरक्षा कर्मी अपना कर्तव्य करते हुए शहीद हो गए,जिनके लोग गए वो दुःख में खो गए ,फ़िर सुरक्षा का वादा किया गया ,मुवावजा देने का आश्वासन दिया गया ,कुछ चीखे कुछ चिल्लाये,कुछ ने एक दुसरे को ताने मारे ,कुछ देश में रहने से ही घबराए ,कुछ देवस्थानों में घूम आए,कुछ छानबीन में लग गए,कुछ ने आशंकाए ,चिंताए जताई,और सब और एक डर फ़ैल गया ,हर कोई सवाल करने लगा उनसे ,औरो से अपने आप से और करने लगा आतंकवादी हमलो के शिकार की लिस्ट में अपने नाम का इंतजार ....

समय सच में मनन का हैं ,अपने अंतर मन के सच्चे इंसान को जगाने का ,जीवन कितना छोटा हैं ,एक दुसरे से प्रेम कर ,शांति से जीने का तरीका सीखने का ,ग़लत के विरोध में डट कर खड़े रहने का ,बुरे का अस्तित्व खत्म करने के प्रण लेने का,दिलो में पनपती नफ़रत को ख़त्म करने का,बदलाव का .....एक बहुत बड़े परिवर्तन का,राष्ट्र गीत गाने का नही ,राष्ट्र बनाने का,एक दुसरे का नही अमानवीयता का विरोध करने का ,स्त्री, पुरूष ,भाई बहन ,सास बहूँ ,हिंदू ,मुस्लिम के छोटे छोटे संघर्षो से उपर उठकर ,मानवता के लिए मानवता के संघर्ष का....... आने वाली पिढीयाँ यह न कहे,तुझसे नाराज़ नही जिंदगी हैरान हूँ मैं ....



पिछले कुछ दिनों से शहर से बाहर होने के कारण ब्लॉग पर लिख नही पाई हूँ ,अत:पाठको से क्षमा चाहती हूँ ,पिछली कुछ पोस्ट्स पर श्री अर्श जी,श्री अनिल पुसदकर जी,श्री राज भाटिया जी ,श्री मीत जी,श्री ब्रिजभुषण श्रीवास्तव,श्री अशोक प्रियरंजन जी ,श्री अभिषेक जी,श्री शिव कुमार मिश्रा जी,सुश्री लावण्या जी ,श्री नीरज गोस्वामी जी ,श्री दिनेश राय द्विवेदी जी ,श्री कुश जी ,श्री सागर नाहर जी ,सुश्री अल्पना वर्मा जी ,डॉ .अनुराग जी ,
श्री समीर लाल जी । आदि सभी पाठको की टिप्पणिया मिली आप सभी का धन्यवाद और मेरी पोस्ट पढने के लिए आभार

Wednesday, November 26, 2008

तुम कहाँ हो?

वो सुबह शाम तुम्हारा नाम लेती हैं ,तुम्हे पुकारती हैं ,तुम्हारी एक आहट के लिए घंटो आँखे लगाये बैठती हैं, कभी अपनों पर नही रखा शायद..............इतना विश्वास तुम पर करती हैं , रोज़ नए नए शब्द ,छंद लाकर न जाने कितनी कविताये तुम्हारे लिए लिखती हैं ,रोज़ न जाने कितने रागों में स्वरों और शब्दों को मोती की तरह पिरो कर प्रेम भरी संगीतमय पुष्पमालाये तुम्हे अर्पण करती हैं । वह कभी मन्दिर जाती हैं ,कभी मस्जिद जाती हैं,कभी चर्च जाकर प्रार्थना गाती हैं ,कभी वाहेगुरु को शीश नवाती हैं ,वह व्रत करती हैं ,कभी करती हैं पूजन ,कभी रोजे रखती हैं ,कभी करती हैं हवन । वह जो तुम्हारी हैं ,सदियों से ,इस सृष्टि के आदि से अंत तक ,सिर्फ़ तुम्हारी, उसका कौन हैं तुम्हारे सिवा बोलो ?फ़िर भी तुम नही आते ?कहीं नही दीखते ,हर बार वह ख़ुद को भरोसा दिलाती हैं की तुम आओगे इस बार नही अगली बार कभी तो कहीं तो .................................

हे ईश्वर................ विश्व की ७०% जनता रोज़ तुम्हे पुकारती हैं ,पुजती हैं ,प्रार्थना करती हैं ....और हर बार हर दुःख के बाद स्वयं को संभालती हैं और कहती हैं की तुम आओगे । माना की तुम ईश्वर हो ,यह कलयुग हैं सारा दर्शन माना, जाना । पर कल जैसी अँधेरी काली रात जब भारत जैसे देश पर बिजली की तरह टूटती हैं तो एक ही प्रश्न ह्रदय में बार बार उठता हैं की हे ईश्वर तुम कहाँ हो?.........

तुम अवतार नही ले सकते तो कम से कम इन अँधेरी राहों में जहाँ मनुष्यता कहीं खो गई हैं ,उजास तो भरो ,जो इनसे जूझना चाहते हैं उनका मार्गदर्शन तो करो ..........

इस साल जितने विस्फोटहुए हैं,क्या ये कलयुग की अति नही हैं ,तुम अति होने के बाद ही अवतार लेते हो ?ऐसा सब कहते हैं ..कम से कम किसी भारतीय नागरिक के मन में अवतरित होकर हमारा मार्गदर्शन करो,हम सब तुम्हारी संतान हैं करुणाकर ,अब तो पथप्रदर्षित करो ।

मेरा और न जाने कितने भारतीयों का मन बार बार तुमसे पूछ रहा हैं ..तुम कहाँ हो ?

Monday, November 24, 2008

जो सबको जीना सिखाये ....


शहर के एक छोटे पर नामचीन विद्यालय में बच्चो की भीड़ जुटी हुई हैं ,सब बच्चे प्रार्थना के लिए खड़े होते हैं और सुबह का प्रेरणा गीत शुरू होता हैं ,ख़ुद जिए सबको जीना सिखाये ,अपनी खुशिया चलो बाट आए...एक १२-१४ साल की लड़की खुशी से जोरो से यह गीत गा रही थी,चारो तरफ़ मानों खुशिया ही खुशिया बिखरी थी,की आचानक किसीने आवाज़ दी राधिका..........और मैं १२-१४ साल आगे वक़्त की गाड़ी में सवार प्रकाश से भी तेज़ गति में अपने आज में लौट आई ,आवाज़ देने वाली वही थी जो मुझे अपने साथ यहाँ खीच कर ले आई थी ,और अनजाने में अपने बचपन में चली गई थी ,यहाँ आज से पहले मैं कभी नही आई थी ,कहने को तो यह भी स्कूल था,यहाँ पर भी छोटे बच्चे पढ़ते थे ,पर उसने कहा था ,की यह स्पेशल बच्चो का स्कूल हैं ...मेरा बेटा स्पेशल हैं ...मतलब?मैं समझी नही थी ,शायद वह जीनियस होगा .............. खैर .. यहाँ पहुँची तो मैंने कहा की मैं अन्दर आकर क्या करुँगी आप प्रिंसिपल से मिलकर जाओ,पर उसने कहा अरे इन बच्चो से मिलोगी नही?स्पेशल बच्चे हैं ...खैर अन्दर गई ,सब बच्चे हस रहे थे ,एक दुसरे से हिलमिल कर बाते कर रहे थे ,कुछ नाच रहे थे कुछ गा रहे थे ,कुछ खेल रहे थे और कुछ पढने का झूठा दिखावा कर रहे थे , बच्चों को खुशियों की बहार इसलिए ही कहा जाता हैं शायद...राधिका ...ये मेरा बेटा ... मुझे देखकर वह थोड़ा शरमाया ,फ़िर मुस्कुराया ,उसने कहा दीदी से हेलो बोलो ,वह कुछ तुतलाया ...जो कम से कम मुझे तो समझ नही आया,उसने कहा देखा ये सब बच्चे कितने स्पेशल हैं ...सच कितने प्यारे,कितने अच्छे वही सरलता, वही मासूमियत,वही भोलापन,वही बचपन ,वही सुंदरता,वही सादापन,पर उन्हें सबसे अलग बनती उनकी वही स्पेशलिटी .............. हाँ वही स्पेशलिटी जिसके कारण हम इन बच्चो को मानसिक विकलांग कहते हैं ...वही स्पेशलिटी जिसके कारण यह बच्चे और बच्चो से अलग दिखाई देते हैं ,वही स्पेशलिटी जो इनके जीवन को एक अलग ही रंग में रंग देती हैं ,जहाँ इनकी दुनिया अपनी ही गति में अपनीही तर्ज़ पर ताल देती हुई ,अपना संगीत ख़ुद ही लिखती और संसार से अलग खुदको सुनती सुनाती अपना पुरा जीवन बिताती हैं ये वही स्पेशल बच्चे थे ,जो  मानसिक कमियों के बावजूद उतनी ही खुशी से आनंद से और जज्बे से अपना जीवन बिता रहे थे,सीख रहे थे और सबको जीना सिखा रहे थे और वो उस स्पेशल बच्चे की स्पेशल माँ ,जो अपने बच्चे की कमी को स्पेशलिटी बताकर दुगुने प्यार ,ममता और जज्बे से अपने बच्चे को आने वाले कल के लिए मजबूत सक्षम बना रही थी ,जिन्दगी की सबसे कठिन परीक्षा को स्पेशल बताकर मुझे जीना सिखा रही थी......

Monday, November 17, 2008

कला...और उसका अनोखा जहाँ

१७ नवंबर २००५ ..सुबह के १०:३० का समय ..सडको पर वाहनों की भारी आवाजाही,लगता हैं सारी दुनिया घर से बाहर इन रास्तो पर उतर आई हैं ,इस भारी भरकम भीड़ में एक युवती न जाने किन ख्यालो में खोयी जोर जोर से गाती गुनगुनाती हुई चली जा रही हैं ,कई लोग उसे देख रहे हैं ,उनमे से कई ने उसे पागल समझ लिया हैं ,पर वो शायद वहा हैं ही नही,वो तो बस जोर जोर से गा रही हैं ,राग बिहाग में लय तानो के प्रकार बना रही हैं ,अचानक पीछे से एक बस जोर से हार्न बजती हुई,बुरी तरह से ब्रेक मारकर रूकती हैं ,बस कन्डक्टर जोर से चिल्लाता हैं ......अरे बेटी.......
तब कहीं जाकर उस युवती की तंद्रा टूटती हैं । उसे समझ आता हैं की वह सड़क पर गाती हुई जा रही थी,तेज़ कदमो से चलती...लगभग भागती हुई,गंतव्य तक पहुँचती हैं ,और वहां जाकर अपने आप पर खूब हंसती हैं ,आप जानना चाहेंगे वह लड़की कौन थी ? .......................... वह लड़कीथी मैं ।

ऐसा कई बार होता हैं ,कुछ अच्छा सा संगीत सुना ,कोई राग दिलो दिमाग पर छा गया तो सब कुछ भूल कर मैं उस राग में खो जाती हूँ । शायद यही हैं कला का जादू ।

एक और घटना सुनिए , मेरे पतिदेव को लौकी के कोफ्ते बहुत पसंद हैं ,एक दिन सोचा आज बनाये जाए,लौकी ली,बेसन घोला ,और रेडियो ऑन,पंडित रविशंकर जी राग मारवा बजा रहे थे ,बस फ़िर क्या था,बड़ा सुरीला माहौल बन गया ,साथ लौकी के कोफ्ते भी बन गये ,कोफ्ते बनाने के बाद तक़रीबन में एक घंटा सोचती रही ,आज कोफ्ते हमेशा जैसे क्यो नही दिख रहे?क्या कमी रह गई? ..तब तक रेडियो पर समाचार शुरू हो गए ,रेडियो बंद किया और फ़िर लौकी के कोफ्ते देखे ,तब कहीं ध्यान आया की ....लौकी के कोफ्ते में मैं लौकी डालना भूल गई सितार सुनते हुए । तब क्या करती भजिये की सब्जी पतिदेव को खिलाई ।

ये कुछ मजेदार घटनाये थी जो मेरे साथ हुई ,कलाकार के साथ ऐसा अक्सर होता हैं ,कला लेखन हो ,संगीत हो ,चित्रकला हो,या और कोई,कलाकार एक बार कला समुन्दर में डूब गया की उसे निकालना ,जग के रक्षक विष्णुदेव को भी संभव नही होता ,उसे सारी दुनिया से अपनी दुनिया अच्छी लगती हैं,वह औरो के बीच में होकर भी कहीं खोया हुआ होता हैं,कुछ न कुछ सोचता रहता हैं,संगी संबंधी या तो उसे पागल करार देते हैं ,या उनकी नाराज़गी उससे कई कई गुना बढ़ जाती हैं । पर जिन्होंने कला से नाता जोड़ा हैं,जो कलाकार हैं वो जानते हैं की कला का जहाँ कितना अनोखा हैं ,प्रेमी युगल को जिस तरह जग की परवाह नही होती वैसे ही सारा जमाना चाहे शत्रु क्यो न बन जाए,हँसे ,पागल कहे ,पर कलाकार अपने कला विश्व को कभी नही भूलता ,उसमे जीना कभी नही छोड़ता । कला ही उसे परमानन्द देती हैं ,जीवनानंद देती हैं ,आत्मानंद देती हैं ,जो सुनता हैं ,पढ़ता हैं,समझता हैं ,वह कलाकार की इस दुनिया की कद्र करता हैं ,और ऐसे क़द्रदानो के कारण ही कलाकार जी पाता हैं ,अपनी कला को तराश पाता हैं . कहते हैं न..


तंत्री नाद कवित्त रस सरस राग रति रंग ।
अनबुढे बुढे तीरे जो बुढे सब अंग । ।


तो ऐसा हैं कला का अनोखा जहाँ ।

Friday, November 14, 2008

जहाँ जिंदगी अब भी मुस्कुराती हैं ....................

गोवा से अहमदाबाद आने वाली फ़्लाइट अपने नियत समय से १ घंटा :३० मिनिट की देरी से हैं,सारे यात्री परेशान हैं ,जैसे तैसे फ़्लाइट आती हैं ,सब विमान यात्री विमान में सवार होते हैं,विमान रन वे पर भागना शुरू होता हैं की अचानक एक बच्चा जोर जोर से रोने लगता हैं ,उसकी माँ उसे चुप करवाने की कोशिश करती हैं लेकिन व्यर्थ ,उसे देखकर फ़्लाइट में बैठे सभी नन्हे बच्चे जोर जोर से रोना चीखना चालू कर देते हैं ,पुरे विमान और पुरी यात्रा में बच्चे रोते रहते हैं,विमान यात्री उन्हें चुप करवाते रहते हैं ,और अपने कान बंद करते रहते हैं ,अहमदाबाद आते ही सब यात्री बच्चो की तरह तालिया बजाते हैं और खुशी से चिल्लाते हैं पहुँच गए अब उतर सकेंगे ...................

यह एक छोटा सा उदाहरण था बच्चो की आत्मीयता का ,इस कथा क्रम को शुरू करने वाली मेरी आरोही ही थी। इसी तरह एक दिन एक मॉल में एक बच्चा किसी बात पर जोर से हँसता हैं बात का तारतम्य न जानते हुए भी वहा खडे सब बच्चे जोर जोर से हँसने लगते हैं ।
यह हैं बचपन . यह हैं बच्चे ,बच्चे ,जीनमे अपना पराया का द्वेष नही,जो मित्रता शत्रुता से परे हैं ,जिन्हें सच झूठ,विश्वास ,अविश्वास ,रुपया ,पैसा,स्वार्थ ,परार्थ कुछ भी नही मालूम । उन्हें मालूम हैं तो बस प्यार। जिनका जीवन आनंद ,उत्साह से हर पल सजा रहता हैं । वे हर एक को चाहते हैं हर कोई उनका अपना हैं।

दो तीन दिन पहले मैं किसी बात पर सोच रही थी, की कैसी दुनिया हो गई हैं,सुबह ८ से रात १० ऑफिस,किसी को किसीके लिए फुरसत नही ,कोई किसी की भावनाओ को समझे,साथ हँसे बोले इतना समय नही,सुबह से इंसान रूपी मशीन बस काम पर लग जाती हैं ,कहीं वो प्यार नही वो आत्मीयता नही,बाजारों में जिंदगी को सजाने सवारने की सारी चीजे मौजूद हैं ,जिनकी चमक दमक जिंदगी को उपरी रूप से इतना सजाती हैं की जिंदगी में कोई कमी नज़र नही आती लेकिन सच्चे अर्थो में जो एक दुसरे के सुख दुःख में हँसे रोये,एक निर्मल मुस्कान से सबका मन अपनी और खींचे ,जो मीठे स्वर में प्यार के दो बोल कह सारा दुःख दर्द दूर कर दे ,ऐसी सच्ची जिंदगी कहा हैं ?यह सब सोचते सोचते ही पुरा दिन कट tगया ,शाम को हम लोग कैफे कॉफी डे गए ,बड़ा अजीब सा बनावटी वातावरण था ,सब लोग धीमे धीमे बात कर रहे थे,वेटर बड़े सलीके से पेश आ रहे थे , प्लेयर पर बड़े बुरे लेकिन नए गाने चल रहे थे,सामने कॉलेज के लड़के लड़कियों का ग्रुप हंस बोल रहा था,पीछे की टेबल पर एक महाशय किताब मुंह पर चिपकाये बैठे थे, कांच के दरवाजे के बाहर खडा एक १०-१२ साल का बच्चा मुझसे इशारे से भीख मांग रहा था . हम सब भी बातों की औपचारिकता निभा रहे थे ,कॉफी आई ,आरोही जो अभी तक इधर उधर खले रही थी,मेरे पास आई और अपने हाथ से कॉफी पिने की जिद करने लगी मैंने समझाया फ़िर भी नही मानी ,मेरे कप से स्ट्रा खींच के कुछ इस तरह से निकाली की सारी कॉफी उसके पापा के कपड़ो पर ,आरोही ने अपने पापा के कपड़ो पर कॉफी से स्प्रे पेंटिंग कर दी थी , पतिदेव को काटों तो खून नही ,सासु माँ मुंह छुपा कर हस रही थी ,ससुर जी इधर उधर देखकर अपनी हँसी छुपाने की असफल कोशिश कर रहे थे ,और मैं जोर जोर से हंस रही थी,आरोही मेरे स्वर में स्वर मिलाती हुई ,तालियाँ बजा बजाकर हंस रही थी । उसके साथ हँसतें हुए सब कुछ भूल गई ,कॉफी डे के बाहर निकले तो बच्चो का एक समूह हमारे पीछे चला आ रहा था और हम पर हंस रहा था ,उस समूह में वह भीख मांगने वाला बच्चा भी था,सारा माजरा समझ आया,और मन ने कहा................................ यहाँ हैं जिंदगी,यहाँ बच्चो में ,यहाँ जिंदगी अपने पुरे उत्साह ,उल्लास प्रेम और आनंद के साथ हँसती गाती झिलमिलाती हैं .जिंदगी यहाँ अब भी मुस्कुराती हैं ।

Monday, November 10, 2008

संसार के सबसे बड़े मायावी..मित्र ..और शत्रु...

वे संसार के सबसे बड़े मायावी हैं ,हम आप और ईश्वर भी उनकी माया के अधीन हैं ,वे सर्वशक्तिमान हैं , उनके सामने न धन की ताकत टिकती हैं ,न बल की ,न शस्त्र उन्हें पराजित कर सकते हैं ,नही अस्त्र उनके सामने टिकते हैं,वे ब्रह्मास्त्र भी हैं और शास्त्रार्थ भी. कवि कलाकार,विद्वान उनके गुण गाते नही थकते ,उनकी माया जिनके साथ हो वो शिखर पर और जिन्होंने उन्हें नही पूजा ,उन्हें भूतल पर कहीं पाव ज़माने की जमीन भी नसीब नही होती । वे ही गीति हैं और वे ही दुर्गति ,उनसे ही संसार की मनोमय सुंदरतम लय हैं और उनसे ही अवनति । वे पल भर में आसमान गिरा सकते हैं ,वे ही जमीन पिघला सकते हैं,कभी छत्रछाया बनकर रक्षण कर सकते हैं ,कभी सर का छप्पर उड़ा कर भक्षण भी कर सकते हैं ,हर रिश्ते की बुनियाद इन पर ही टिकी होती हैं ,इनसे ही रिश्ते बनते हैं और इनसे ही टूट जाते हैं .ये जमीन हैं आसमान हैं ,वे सूर्य हैं चंद्र हैं और कल्याण भी हैं ,वे ईश है देव हैं और दैव भी हैं ,एक वही हैं जिनकी पूजा जिन्होंने कर ली वो तर गए बाकी जीते जी मर गए।

आप सोच रहे होंगे मैं क्यों पहेली बुझा रही हूँ?यह क्याहैं?मैं कबसे किसी मायावी के बारे में लिखने लगी?आदि आदि । पर जब मैं उनका नाम बताउंगी तो आप भी मुझसे सौ टका सहमत होंगे। सभी के मित्र और शत्रु ,कल्याणकारी और विनाशकारी, आनंददायी और दुखदायी वे मायावी हैं.................................. शब्द ।

शब्द जिनका राज्य पुरे संसार पर चलता हैं ,मनुष्य ने जबसे भावो की अभिवयक्ति के लिए शब्दों का सहारा लेना प्रारंभ किया तबसे आज तक वे मनुष्य जीवन को भाग्यनिर्धाता के रूप में चलाते आए हैं ,मनुष्य की किस्मत बनाते बिघाडते आए हैं।

इंसान पढ़ लिया , विद्वान हो लिया ,ज्ञानवान हो लिया ,न जाने कितनी भाषाओ का सृजक और पोषक हो लिया ,लेकिन शब्दों का सही प्रयोग और अभिवयक्ति की सही दिशा आज तक निर्धारित करना पुरी तरह से नही सिखा ,उसके पास शब्दों का भण्डार हैं लेकिन उनको किस तरह से प्रयोग करना हैं उसके दैनंदिन जीवन में ,वह आज भी यह नही जानता ,भषा विज्ञानी हैं ,लेकिन शब्दों का प्रयोग एक कला हैं ,कला आत्मा की अभिवयक्ति हैं ,और जहाँ यह अभिवयक्ति चुकी ,सारा काम बिघाड जाता हैं।

आज के पढ़े लिखे लोग जिस तरह की भाषा का प्रयोग करते हैं ,समझ नही आता भाषा की अधोगति पर रोया जाए या वाणी की अवनति और दुखदायी स्थिति पर । कहते हैं न एक बार ब्रह्मास्त्र की मार चुक जाए या उससे दुखे हुए इन्सान का इलाज हो वह ठीक हो जाए ,लेकिन शब्दास्त्र की मार युगों युगों तक आत्मा पर घाव बन कर मनुष्य ह्रदय को सलाती रहती हैं,जलाती रहती हैं ।
शब्द विज्ञानं हैं और बोलना कला , इसलिए वीणापाणी को वाणी भी कहा जाता हैं ,देवी के अन्य रूपों के साथ शब्दमयी देवी भी हैं , शब्दों को मधुरता से प्रेम से आनंद से बोला जाता हैं तो सुनने वाला आपका प्रेमी और मित्र हो जाता हैं ,और जब इन्ही शब्दों को तोड़ मरोड़ कर अपने निम्नतम स्तर पर बुरे स्वर के साथ प्रयोग किया जाता हैं ,तो सुनने वाले के लिए जीवन खत्म हो जाता हैं ,धरती और आकाश सब शून्य हो जाते हैं ,ह्रदय भावना शून्य ,करुणा शून्य ,प्रेम शून्य हो जाता हैं ,इसीसे उपजता हैं प्रतिकार ..विरोध... नफ़रत ...और शब्दास्त्र पर शब्दास्त्र का तीक्ष्ण प्रयोग। इन सबसे आहत हो जीवन कहीं छुप जाता हैं जैसे अमावास की रात्रि में चंद्र तारे कही छुप जाते हैं और बचता हैं केवल अँधेरा ।

शब्द धरोहर हैं ,मानवीय संस्कृति और संस्कार का अहम् भाग । उनका प्रयोग प्रेम से ,मधुर स्वर के साथ और शांति से किया जाए तो ही हम जीवन संघर्ष को जीत सकते हैं .और इन मायावी शब्दों को अपना मित्र बना कर सदैव आदर के पात्र और प्रिय बन सकते हैं ..मुझे लगता हैं हम बच्चो को पोथी पुस्तके पढाते हैं इन सबके साथ वाणी का सही प्रयोग ,आवाज़ को कम अधिक कर किस तरह से अपनी बात को औरो तक पहुचाया जाए ,स्वर का शब्द से सम्बन्ध और उसका यथोउचित प्रयोग यह विषय भी बच्चो को विद्यालय में रखा जाना चाहिए और साथ ही साथ माता पिता द्वारा भी बच्चो को पढाया जाना चाहिए। ताकि शब्द सके मित्र बन सके .
मेरा इन मायावी शब्दों को नमन ...

Sunday, November 2, 2008

कौन हिंदू, कौन मुस्लिम ?


तक़रीबन १२ बजे का समय ,हम कोल्हापुर महालक्ष्मी देवस्थान से बाहर निकले ,वह तेजी से दौड़ता हुआ मेरे पतिदेव के पास आया और बोला "साहेब गाड़ी तैयार आहे" ,(गाड़ी तैयार हैं ) वो............ सफ़ेद कुर्ता पायजामा पहने,शुद्ध मराठी बोलता हुआ ,मराठी माणुस सा ।

आज सुबह ही हम कोल्हापुर पहुंचे थे ,मैं ,सासु माँ ,ससुर जी ,पतिदेव और बेटी हम सब गाड़ी में बैठ गए ,सब चुप थे ,पर वह बोलता जा रहा था ,"बघा साहेब इथे जवळस देवीच देवुळ आहे ...नंतर आपण ज्योतिबा मन्दिर चे दर्शन करू ,औदुम्बरच्या वाडीत चलू ..................................(यहाँ पास ही देवी का मन्दिर हैं ,बाद में हम ज्योतिबा मन्दिर के दर्शन को जायेंगे ,औदुम्बर के मन्दिर भी जायेंगे )आदि आदि आदि । मैं सोच रही थी ,यह बोलते बोलते थका नही क्या ?उस दिन वह हमें कम से कम चार तीर्थ स्थलों पर ले गया । दुसरे दिन फ़िर सुबह ७ से हम देव दर्शन के लिए निकल पड़े ,आज भी कल की तरह ही उसकी बातें- बातें । "बघा वहिनी हे आमच्या कोल्हापुरातले महान व्यक्तिंच घर । तुम्हाला सांगलीच्या गणपतीची गोष्ट सांगतो ....."(देखिये भाभी ये हमारे कोल्हापुर के महान व्यक्ति का घर,आपको सांगली के गणपति की कहानी सुनाता हूँ । )

एक जगह हम कुछ देर रुके उसके पास एक फोन आया ..........."हाँ बोल..काय?अस !!!!!!!जा ,बघू ...और उसने गुस्से से फ़ोन पटका धम्मम !!!!!!!!!!!!!!
फ़िर मेरी सासु माँ से कहने लगा ,बघा आई मैं सुबह से नमाज़ पढ़के निकलता हूँ ,पर मेरा भाई कुछ नही करता ,दिन भर घर में बैठा रहता हैं ,माझी आई म्हणते लहान ऐ ....(मेरी माँ कहती हैं वह तुम्हारा छोटा भाई हैं )

सासु माँ आश्चर्य से हक्की बक्की ...
घर आने के बाद उन्होंने मुझसे पूछा "राधिका ये भाई मुस्लिम था ....?"

हाँ वह मराठी माणुस सा दिखने वाला ड्राईवर मुसलमान था ,उसका नाम था "अल्ला बख्श बागबान "।

कोल्हापुर में हम तीन दिन थे . वही नही न जाने कितने मुसलमान शुद्ध मराठी बोल रहे थे,देवी महालक्ष्मी के दर्शनों को आतुर थे ,कुछ माँ की तस्वीरे बेच रहे थे,कुछ देवी की साडी और चूड़ी बेच रहे थे । सब देख कर मैं सोच में पड़ गई,जब मैं गुजरात में होती हूँ तो वहाँ हर कोई गुजराती दीखता हैं ,हिंदू ,मुस्लिम ,सिख, इसाई ...हर कोई ,जब महाराष्ट्र में होती हूँ तो हर कोई मराठी ...पंजाब में हर व्यक्ति वाहेगुरु की फतह कहता हैं ,और दक्षिण में हर व्यक्ति तिरुपति बालाजी को नमन करता हैं ।हम सब हाजी अली जाते हैं ,मियां तानसेन के मकबरे पर सब संगीतज्ञ मत्था टेकते हैं। मैं सोचती रह जाती हूँ कहीं कोई हिंदू दिखे,कहीं मुस्लिम ,कहीं सिख या फ़िर इसाई ,पर दीखते हैं सिर्फ़ इंसान ,धर्म ,जाती ,देश ,राज्य की सीमओं से परे,एक दुसरे के धर्मो का सन्मान करते ,मानवीय रिश्ते निभाते ,एक दुसरे से प्रेम भाव और बंधुता रखते इंसान और भारतीय । सच्चे भारतीय ,जिनकी नज़रे न तो हिंदू मुस्लिम का भेद जानती हैं ,न धर्म मजहब की चौखटे ,वह जानती हैं सिर्फ़ जीवन के मायने और भारतीयत्व ।

धर्म ,मजहब का द्वेष जिनके मनो में हैं ,वह मुस्लिम नही ,हिंदू भी नही ,उनका कोई धर्म नही वह या तो ख़ुद विकृत मनस्तिथि के हैं ,या अपना स्वार्थ चाहते हैं। सच्चा भारतीय तो भारत में हर कहीं हैं ,उसे देखकर मुझसा कोई भी प्रश्न में पड़ जाए की कौन हिंदू, कौन मुस्लिम ?

Friday, October 24, 2008

तमसो मा ज्योतिर्गमय(शुभ दीपावली )



दीपावली : दीपो का त्यौहार ,ऐश्वर्य का त्यौहार ,अनगिनत खुशियों का त्यौहार ,एक दुसरे से मिलने के अवसर का त्यौहार ,मिठाइयों का त्यौहार , पटाखों का त्यौहार , उजाले का त्यौहार । बच्चो से लेकर वृद्धो तक सभी को इस त्यौहार का इंतजार होता हैं ,इंतजार करते करते इस साल भी दिवाली आ ही गई । हम सभी ने अपनी अपनी तरह से दिवाली को आनंदमय बनाने के लिए कई सारी तैयारिया की हैं ,कोई घर द्वार सजा रहा हैं ,कोई नया सामान ला रहा हैं ,कोई पकवान बना रहा हैं ,कोई अपने रिश्तेदारों के यहाँ जा रहा हैं ,तो कोई घर पर ही मेहमानों का इंतजार कर रहा हैं .

आप सभी को दीपावली की शुभकामनाये , दीपावली सभी के घर में आस्था ,आनंद और प्रेम का प्रकाश लाये ,अमावस की दीपावली इस बार अनंत आकाश को चंद्र , तारांगणो से सजा जाए ,हर दुखी ह्रदय का दुःख मिट जाए ,वृक्ष वल्लियो से पुनः भारतीय धरा हरी भरी हो जाए , भूखो, अनाथो को नाथ और भोजन मिल जाए , जैसे दीपो का प्रकाश शांत सुंदर होता हैं वैसे ही मानव मन में असंख्य भक्ति ,करुणा ,मानवीयता और शांति के दीप जल जाए । जो जीवन के कठिन और अंधेरे रास्तो पर चल रहे हैं उनके रास्ते सरल और प्रकाशमय हो जाए ,जो वृद्ध बीमारीयों से पीड़ित, दुखी हैं ,वे उन पर विजय पा सुखी हो जाए ,जो इस जीवन में कलाओ से वंचित हैं उन पर माँ शारदा कृपा करके कलाए बरसाए ,जो माँ लक्ष्मी की कृपा से वंचित हैं उन्हें सुख ,समृद्धि ,सम्पत्ति मिल जाए ,स्वर आराधना करने वाले संगीत की उँचाइयो को पा जाए । अध्ययन करने वाले ज्ञान के दीप जलाये । शुभ दीपावली और यही प्रार्थना :असतो मा सद्गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय मृत्योर् मा अमृतं गमय ॐ शांति शांति शांति

पिछली कुछ पोस्टस पर श्री कुश जी ,श्री मार्कंड जी,श्री सुशील कुमार छोक्कर जी ,श्री मनुज मेहता जी ,श्री सुनील .आर .कर्मले जी ,श्री राज भाटिया जी ,श्री शिव कुमार मिश्रा जी ,श्री संजय जुम्नानी जी ,श्री प.एन.सुब्रम्ह्न्यम जी ,श्री दीपक बहरे जी,सुश्री रंजना जी ,सुश्री शोभा जी ,श्री निशु जी,श्री नीरज रोहिला जी ,श्री समीर जी ,सुश्री लावण्या जी ,श्री नीरज गोस्वामी जी ,श्री मीत जी ,सुश्री मनविंदर जी ,श्री सुमन सौरभ जी ,श्री मंथन जी ,श्री ब्रजमोहन श्रीवास्तव जी ,सुश्री आशा जोगलेकर जी ,सुश्री घुघती बासूती जी ,श्री मोहन वशिष्ठ जी ,श्री अशोक प्रियरंजन जी,श्री श्यामल सुमन जी ,श्री श्रीकांत पराशर जी,सुश्री ऋचा जी ,श्री दिनेश राय द्विवेदी जी ,डॉक्टर अनुराग जी आदि सभी की टिप्पणिया मिली। आप सभी से मेरे लेखन के लिए अच्छी टिप्पणिया पाकर जो प्रोत्साहन मिलता हैं उस कारण ही लिख पा रही हूँ ,आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद ।
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